चल मुसाफिर आज पुरानी यादों को टटोला जाये, अतीत की इस किताब को आज फिर से खोला जाए, देखा जाए क्या इश्क़ उसका साथ था, मुसीबतों मे थामे हुए तू किसका हाथ था…
कुछ साल पीछे चले जब तू, माँ के गर्भ में पड़ा था, तू था उस सबसे अनजान, की बाहर दुनिया मे, दुख कितना बड़ा था, माँ के गर्भ से उसने तुझ पर, अपना मन लगाया, बेशुमार तुझे इश्क़ किया, तभी से तुझे नाम ले बुलाया….
फिर कुछ साल बीते, बसंत आए पतझड़ बीते, वो जब तू लड़खड़ाता था, चलने की कोशिश जो करता, गिरता था जो वो तेरा हाथ पकड़ उठाता, वो तेरे पावों को ठेस तक ना लगने देता, अपने प्रेम का वो इस तरहा परमाण था देता…
वो जब तू पहला शब्द कुछ कहा था, खुश हुआ उस दिन वो, के उसका बेटा जो बोला था, फिर धीरे-धीरे ज्यू-त्यो, उम्र तेरी बढ़ती गयी, तू भूल गया उसको, रूह तेरी जो मरती गयी…
फिर दुनिया में वो सब कलेश, जिस से तू अनजान था, हाँ वही दुख जो अब तक गुमनाम था, वो सभी तकलीफें जो तू सह नहीं पाता, गर येशु वक्त पर ना आता, तू कब का मर ही जाता…
तुझसे छिप कर भी हमेशा, वो तुझे देखता था, तू ही अनजान था जो, खुद को अकेला समझा था, उसने हर पल तुझ पर अपना दिल लगाया, तू जब ना सुना तब भी “मेरे बेटे” कह बुलाया…
ये सारे अतीत के पन्ने उसके उपस्थिति से भरे हैं, उसकी देह पर आज भी तेरे सितम के निशान पड़े हैं, सब कुछ तेरा क्लैश वो खुद पर सहा है, तुझको वो दुख तो मालूम भी नहीं, जिनसे तेरे लिए वो अक्सर लड़ा है….
वो जब तू मौत तक पहुंच चुका था, वो जब तू उसको नफरत करने लगा था, वो जब तू बार-बार उसको क्रूस पे चढ़ाता था, वो जब तू उसके खून को रौंद भी जाता था, वो जब तेरे हाथ उसके खून से रंगे थे, वो जब तेरी जेब मे चाँदी के सिक्के पड़े थे, तू कितनी ही बार उसको बेच कर आया है, कितनी ही बार उसको तू सूली चढाया है, तब भी वो तुझसे प्यार करता रहा, तुझे जिंदा रखा पर वो मरता रहा…
ये सारा अतीत तेरा जो है, उसके खून से लिखा है, तेरी नफरत के बाद भी, वो तुझसे इश्क़ ही किया है, ये उम्र के तू जो चौबीस बसंत जिया है, तेरी कुछ औकात ना थी उसने रहम किया है…
इतने एहसानों के बाद भी वो एहसान कहाँ गिनाता है, करता है तुझसे प्यार हमेशा तक निभाता है, तू जो होता उदास वो गले से लगाता है, जब सब अकेला छोड़ते वो दौड़ा चला आता है, तेरे लिए ही वो योजनाएं बनाता है, तेरे दुख में रोता खुशी में मुस्कुराता है….
वो कहता है मैं हूँ, तेरा हौसला बढ़ाता है, अतीत में वो साथ था अब तुझे भविष्य मे ले जाता है, तेरे पहुचने से पहले वो तैयार सब कर देगा, तुझसे प्यार करता है धोखा कभी ना देगा, तो बता अरे मुसाफिर, तू तन्हा कहाँ रहा था, जिसे तू अंधेरा समझा वो उसका हाथ था, जो तुझे ढंके रहा था…
अब उठ मुसाफिर आगे को, सफ़र बहुत बचा हुआ है, डर मत उसने तेरा हाथ थामा हुआ है, वो ही खुद मंज़िल पर साथ ले जायगा, तू हिम्मत बाँध दृढ़ होजा वो हमेशा साथ निभाएगा….